
इचरज है
सगला लोग सहज है
और हूँ ठिठरूं हूँ
अण सहज व्हे भी क्यूं कोनी
आखिर ,सगला लपेट राखी है
आप आप रे डील माथे
आप आप रो तावड़ो
अर ,मैं तो निरो नागो हूँ
साचाणी , इण वास्ते 'इज
ठिठुर रियो हूँ मैं
एकाणी हटो
मैं भी लेवूं ला
एक टुकड़ो तावड़ो
म्हारे आप रे वास्ते
अर लपेट लेवूं लों
म्हारे डील माथे
और सहज हो जावू लों
सगला रे ज्यूं
ठिठुरती सुबह रे माय ।
-अजीत पाल सिंह दैया
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