Saturday, March 5, 2011

चिडकली

बाबोसा रे आँगणा में
आज री सुबह उदास सी है

क्यूंकि रोज़ आँगणा में
फुदकण वाली चिडकल्या मूं
एक चिडकली कम है ,

काले एक चिडकली
फुर्र करतां उड़गी ही .

आँगणा! आंसूडा मत दुलका
परायी चिडकली रे खातर

जिको मांडणा कोरे है
किणी दूजा आँगणा में.

- अजीत पाल सिंह दैया

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