उण दिन
म्हे कठेई जावतो हो
उनाळे रा दिन हा
अर जबर रो तावडो
सूरजी रो पूरो परकोप
चालता चालता
मने तिरस लागी
कंठ सुखण लागो
पण पाणी कठे,
आड़े- पाड़े मिनख मानखो
तो मिनख मानखो
कोई जीव जिनावर ई
निज़र कोनी आयो .
अठीने आ तिरस ही
कै लगातार बढती जावती
लाग्यो हो कै
पराण-पखेरू हमै उड़े हमै उड़े .
अचानक मने दिखी
कोई नाडी री पाळ
अर म्हे ज्यूँ त्यूं कर'न
नाडी तक पूग्यो
पण नाडी में
एक छांट भी कोनी ही .
हतास हो' र म्हे पाळ माथे
उभ्योड़ा खेजडा रे हेठे पड्ग्यो
इणीज़ वगत
मने एक अवाज़ हुणीजी
-बीरा ,कई हुयो ?
म्हे देख्यो के म्हारे साम्ही
बैठी ही एक सुगन चिड़ी.
म्हे कैयो-सुगन बाईसा,
तिरसा मरू हूँ ,
पण इण नाडी में तो
चळू भर पाणी' ई कोणी बच्यो .
सुगन चिड़ी बोली -
बीरा इत्तीक सी बात
ले थूं थारी बूक मांड .
म्हे चिड़कली ने इचरज़ सूं
देखण लाग्यो .
मने पसोपेस में जाण' र
चिड़कली फेरूँ बोली -
थूं बूक मांड तो सही गेला .
ज्यूं ही नीचे झुक' र
म्हे बूक मांडी
कै बरसण लाग्यो
मोटोड़ी छाँटां रो मेह
अर, देखता ही देखता
भरगी बा नाडी छिल्लम- छिल्ल.
म्हे इचरज़ में पड्ग्यो ,
तुरत ही म्हे उण चिड़कली ने
देखण री करी कोसिस
पण बा चिड़कली
पाछी निजरां कोणी आयी !!!
-अजीतपाल सिंह दैया
No comments:
Post a Comment